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पुरानी कहावत सिद्द हुए की एक बाप १०० की प्याश भुजा सकता हैं पर १०० एक की प्याश नहीं भुजा सकते
मेरा १४ जनवरी को मेरा कुछ व्यकियों के साथ सेक्टर १० में स्थित वर्द्ध आश्रम में जाना हुआ पर वंहा आखों में आशुं नहीं रुके
एक ही बात बार बार आती रही
क्या हमारे संस्कार कमजोर हो गए हैं की आज हम आपने माँ बाप के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं की आँखे शर्म से झुक जाती हैं
पर हमें संस्कार कमजोर नहीं ये बात भी वंहा साबित हो गए जब देखा कि
अपने पिता की इच्छानुसार वर्द्ध आश्रम में बुडे माँ बाप जिन को अपने घर से ही निकाल दिया हो उनकी सेवा कर रहा हैं और वह भी बिना किसी बाहरी सहायता के .
उन्होंने अपनी सरकारी नोकरी छोड़ कर सेवा करने का फैसला लिया
वाकए सबसे वडा धर्म यही है.
पर ......................................................................
जब वंहा एक बूड़ी माँ से मिला जो की कुछ ही दिन की मेहवान हैं वह एक ADRA की माँ थी उनका बेटा एक बहुत बड़ा अफसर है
पर....................... अपनी माँ की सेवा करने में असमर्थ वह क्या देश कि सेवा करेगा ?
कइ से बात हूँ सभी का कहना यही था की भगवान किसी को ऐसी औलाद नहीं दे पूरा जीवन अपने बच्चों की जरूरतें पूरी की और जब हमें उनकी आवश्यकता हैं तब हमें क्या मिला अपने ही बेटों ने बहार निकाल दिया ............
bitter truth of today!!
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ReplyDeletebahut aachha laga yadi, yae soch sabhi ki ho jayae to bhart suarg ban jayaega
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