Thursday, October 30, 2014

शिक्षा लेने का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाने के लिए है ?



शिक्षा का महत्व कोई भी युग रहा हो शिक्षा की जरूरत हमेशा रही है | समय के साथ शिक्षा का पैटर्न बदला परन्तु उद्देश हमेशा एक रहा कि मनुष्य और राक्षस में अंतर कराना, मनुष्य को मनुष्य बनाये रखना |


                                         शिक्षा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है , हमें जीने की नयी दिशा व् जीने का सही तरीका सिखाती है | स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है राष्ट्र के निर्माण के लिए भारतीयों को शिक्षित होने की परमावश्यकता है | और शिक्षा वो है जिस शिक्षा से हम जीवन का निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र का गठन कर सके व् विचारों का सामजस्य कर सके वही शिक्षा कहलाने योग्य है | गांधीजी का मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है।
               


  शिक्षित किसे माने !
  डिग्री धारक शिक्षित है ?
  भारत की कितनी % जनसँख्या शिक्षित और कितनी डिग्रीधारक   शिक्षा का महत्व हमारे जीवन में ?

आज शिक्षा का पैटर्न है कि पाठ्यक्रम को पूरा कराना | आप किसी भी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय का उद्देश्य देखे तो सिलेबस पूरा कराना रह गया है, 80-90% अंक हासिल करना बच्चे का उद्देश्य बना दिया गया है, माता पिता व् अभिभावक बंधू भी 80-90% अंक आने पर प्रसन्न हो जाते है और वो भी नहीं चाहते है की उनका वच्चा सिलेबस से बहार की पुस्तकों  का अध्यन करे|
क्या डिग्री मिलने पर हम शिक्षित हो जाते है ! क्या हमारे ग्रेजुएट – पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्ट्रेट (Phd.) होने पर हम शिक्षित है ! शायद आप भी ये ही कहेंगे की हां डिग्री होगी तो पढ़ा लिखा ही होगा | ठीक है मित्रो एक जीवित उदाहरण आप को देता है IIT से इंजीनियरिंग करने के बाद IPS में 83 रेंक पाने वाले व्यक्ति श्री संजीव त्यागी जी को आप क्या बोलोगे ......... शिक्षित क्यू कि आईपीएस में सलेक्ट होना भी अपने आप में महत्व रखता है, त्यागी जी इंटेलिजेंट है इसमे भी कोई संदेह नहीं किया जा सकता है लेकिन त्यागी जी और तत्कालीन DGP मेरठ को जून २०१४ में सस्पेंड कर दिया जाता है क्यू कि अपनी ही ऑफिस की महिला कर्मी के साथ छेड़-छाड़ करने पर, अब आप मुझे बताईये क्या संजीव त्यागी जी शिक्षित लोगों की पंक्ति में आते है ? क्या इतने बड़े पद पर होने के बाद इस  तरीके की घटनाये हमारी शिक्षा पद्दति पर ऊँगली नहीं उठती ? क्या संजीव त्यागी के व्यक्तित्व का विकास हुआ इस शिक्षा पद्दति से ! ये मात्र एक उदहारण है, ऐसे तमाम उदाहरण हमें हर रोज देखने को मिल रहे है |
आज शिक्षा सिर्फ और सिर्फ नौकरी पाने के लिए और पैसे कमाने के लिए हो गयी है, आज की शिक्षा के पैटर्न से सिर्फ नौकरी मिलना संभव है व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित नहीं किया जा सकता है | देश में डिग्रीधारकों की संख्या तो निरंतर बढ़ रही है लेकिन व्यक्तिव का विकास नहीं हो रहा है |
हम समस्याओं के समाधान के लिए कानून का प्रयोग कर रहे है लेकिन कानून किसी भी क्राइम को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर सकता, कानून सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति में भय डर पैदा कर सकता है, और भय जब तक ही होता है जब तक वो व्यक्ति पर हाभी नहीं हो | और व्यक्ति पर भय हाभी नहीं होगा जब हमारा व्यक्तिव मनुष्य के गुणों के अनुरूप होगा | व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करने में धार्मिक पुस्तकें बहुत बड़ी सहायक होती है जो हमें संस्कार, संस्कृति और सभ्यता सिखाती है, हमें सही और गलत का बोध कराती है, मन की अंतरात्मा को सुनने में मदत करती है | लेकिन आज की युवा पीढ़ी न्यू फैसन के नाम पर संस्कारो और संस्कृति को नकार रही है, जो संस्कारों और संस्कृति को जबरदस्ती थोपने का आरोप लगा कर, अनुशासन में रहने को, जुर्म, पावंदी और अलोकतांत्रिक का नाम देकर विरोध कर रही है, मेरे अनुसार जिसका नतीजा बढ़ती रेप की घटनाएँ, हवस की बढती प्रवर्ती ,हर मोड़ पर होते शर्मशार रिश्तों की घटनाये, नशाखोरी अनुशासनहीनता और अपराधिक घटनाये आदि है, मनुष्य, मनुष्य न रह कर राक्षस प्रवर्ती धारण करता जा रहा है | संस्कार और संस्क्रति ही हमें मनुष्य बनाते है| लेकिन भारत में शिक्षा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ डिग्रियां ही मिल रही जो की भारत राष्ट्र के लिए चिंतनीय विषय है |

जयकान्त पाराशर
www.jkparashar.blogspot.com






               

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