Monday, June 22, 2015

युवाओ में राजनैतिक चेतना

युवाओ में राजनैतिक चेतना के विकास की जरुरत है | अभी की स्थिति को देखते हुये  राजनीति हो या छात्र राजनीति दोनों की दशा ड़ावा डोल है, कुछ गिने चुने लोगो के अपवाद को छोड दे तो राजनीति षड्यंत्रकारियों का जमावड़ा लगता है, जो सत्ता व् शासन का सुख पाने के लिये किसी भी हद तक कूट-नीति रचने के लिए तैयार है, इन के कारनामे देख आज कॉमनमैन राजनीति का सामान्य अर्थ ही भूल गया है, जन जीवन में राजनीति का मतलब षड्यंत्र, धूर्तता, चालबाजी धोखाधड़ी मानी जाने लगा है तभी तो आज लोग षड्यंत्रकरिओं और धोखेबाजों को देख बोलते है राजनीति कर रहा है |

    कभी समय था देश के दीवाने लोकमान्य तिलक, सरोजनी नायडू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री जैसे महान राजनैतिज्ञ जिनका धर्म, कर्म सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रधर्म, राष्ट्र हित था, लेकिन अब तो जिधर नजर डालो उधर ही चारा घोटाला, रुरिया घोटाला, कोयला घोटाला, यंह तक की सुखा व् बाढ़ घोटाला करने वालों की भीड़ नजर आती है | ये राज तो करना चाहते है सिर्फ और सिर्फ अपने हितों के लिये, इनके पास न कोई नीति और न कोई प्लान इन के पास है तो वो बस अपन स्वार्थ |
    राष्ट्रीय व् क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टिओं ने छात्र राजनीति में भी अपनी घुसपैठ बना रखी है, इन्ही के संगठन छात्र राजनीति का खेल खेलते है | राष्ट्रीय व् क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की तरह यंहा भी अपराधों व् अपराधिओं का बोल बाला हो चूका है | 5 मई 2005 को राजथान हईकौर्ट की जयपुर खंडपीठ ने विश्वविद्यालय सहित सभी शिक्षण संस्थानों में छात्र सघों और शिक्षण संघों के चुनाव पर रोक लगाने का फैसला सुनाया | खंडपीठ का कहना था की नेतागिरी की धाक ज़माने के लिए छात्र नेता शिक्षकों का अपमान करते है और राजनैतिक दल छात्र एकता को विभाजित कर रहे है |   

    आज का युवा राजनीति की बातें तो करता है लेकिन राजनीति में आकर बदलाब नहीं करना चाहता, राजनीति की कमियां तो गिनता है लेकिन कमियों को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठता| आज भारत में सबसे बड़ी शक्ति युवा शक्ति है फिर भी अपनी सकती का प्रयोग कर देश को नहीं संभालना चाहता | दिल्ली में दिसबर २०१२ को लगा था अब युवा जग गया है देश बदलेगा लेकिन ठंडा हो गया जोश, मात्र आंदोलन के लिए नहीं अब राजनीति में भी उसी जोश की जरुरत है | भारत के शक्तिशाली निर्माण के लिए युवाओं में राजनीति के प्रति चेतना का निर्माण परमावश्यक है |


                                                           
                                                                  जयकान्त पाराशर 
                                                                                            डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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