राजनीति v/s कॉमन मैन
(जी हां कॉमन मैन ... क्यू की आम आदमी तो अरविन्द केजरीवाल जी है )
(जी हां कॉमन मैन ... क्यू की आम आदमी तो अरविन्द केजरीवाल जी है )

सभी राजनैतिक दलों से एक प्रश्न है कि आप क्यू नि समझते है कॉमनमैन का दर्द .. आप
जानते है कि ट्रेन को रोकने से सडक मार्गों को रोकने से जनजीवन पर क्या फर्क पड़ता
है ... कितनी तकलीफ होती है कॉमनमैन को ??
किसी का परीक्षा तो किसी का इंटरव्यू छुट जाता है सालों साल कि मेहनत एक झटके में
मिट्टी में मिल जाती है सिर्फ किस बजह से सिर्फ राजनितिक दलों का अपना उल्लू सीधा
करने कि बजह से ... मै हाल ही में भाजपा के द्वारा विहार में ट्रेन को रोके जाने
पर ये कहने पर मजबूर हो रहा हू ... आखिर क्यू नि समझ आता कॉमनमैन का दर्द किसी को
और भी तरीके है आंदोलन करने के ... आप अन्ना जी कि तरह शान्ति पूर्वक भी आंदोलन कर
सकते है जिस में कोई मार्ग बाधित नहीं हुआ किसी भी कॉमनमैन को कोई परेशानी नहीं
हुए .. और एक सफल आंदोलन के रूप में हम सभी के सामने था |
२६ जनवरी २०१४ से पहले अरविन्द
केजरीवाल जी का सड़क पर वैठाना क्या था जिसमे भी सिर्फ और सिर्फ कॉमनमैन को
प्रोब्लम हुए केजरीवाल जी तो अपना चेहरा चमकाने में लगे रहे उनको क्या फर्क पड़ता
है धारा १४४ लगी हो या नहीं देश कि सुरक्षा से क्या फर्क पड़ता है क्या फर्क पड़ता
है |
ये घटनाये कोई नई बाते नहीं है ... ये तो वर्षों से होता आ रहा है हर राजनितिक दल
को अपना उल्लू सीधा करना है बस | आखिर कब तक चलेगा ये सब ? कभी कोई सोचता है कि
कॉमनमैन के आलावा भी देश कि इकोनोमी पर भी असर होता है आये दिन अदालतों कि हड़ताल
जिससे अदालतो कि कार्यवाही ही नहीं होती जिस के कारण केस पैंडिंग में ही रहते है
फाईलो का ढेर लग जाता है|
जयकान्त पाराशर
आगराjkparashar@gmail.com
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